Tuesday, September 17, 2013

"कही तो हो "by: अमित रावत(AMIT RAWAT)

(This poem is dedicated to all women who suffered a lot from this patriarchal society...this is now responsibility of each citizen of our country to ensure female friendly environment). This poem is in hindi, kindly put hindi option ;)
             

ना कोई ज़मी है ना कोई आसमा ,
ना कोई शहर है ना कोई ग़ाव ,
कही तो हो ज़हा , मेरे इज्ज़त की हो छाव।

मै रोती मै बिलखती , मै दर-दर की ठोखरे खाती,
कही तो ज़हा मै एक पल का चैन पाती।

मेरी समझ को न कोई समझने वाले,
मेरी इज्ज़त को लुटते कई है  देखने वाले,
कही तो हो ज़हा मेरे सपनो को बुनने वाले।

मेरे जन्म पे कोई भी ख़ुशी न  आती,
पर नन्हा भाई हो तो सब जगह दिवाली और  रमजान मनाई जाती,
कही तो हो ज़हा मेरे दिया की भी ज्योत जलाई जाती।

मेरे दर्द पे हसने वाले एक दिन ऐसा आएगा,
जब मेरे दर्द की चुबन तू भी पायेगा,
पर सोचके तु भी सहारा देगा कि
गलती हुई सब से फिर शायद मुझसे न होगा अब से

मै तो समझ जाऊंगा पर तेरी पीड़ा औरो को कैसे बतलाऊंगा।
ये
पापी दुनिया है दुसरो की पीड़ा पे चैन इनको आता है,
जब कोई दर्द में जी रहा हो तभी इनको भाता है।

ये ना समझेगे तेरे दर्द को,
समझेगे तब जब दर्द इनका हो तो ,
ऐसा दर्द इस दुनिया से जायेगा,
जब ये ही दर्द एक साथ सब में आएगा।

फिर तू न पूछेगी कभी
कही तो हो… कही तो हो।
                                                           BY: RAWAT AMIT
                                                                                   



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